लेखनी प्रतियोगिता -14-Apr-2023
ये मन टुकड़े टुकड़े करके
वो पूछ रहे हैं कैसा हूँ
मैं खुद ही समझ नहीं पाया
तो क्या बतलाऊँ कैसा हूँ।
न मन कहीं पे लगता है
न कोई इच्छा बाकी है
इस राह का अंत नहीं दिखता
शुरुआत महज एक झांकी है
कोई बुत जैसे खेतों का
मैं भी कुछ कुछ ऐसा हूँ।
जैसे कोई सुंदर बर्तन
नीचे गिरकर टूट गया हो
आशाओं के काटके धागे
कोई पतंगें लूट गया हो
जो पतंग कट गिरी अम्बर से
मैं बिल्कुल उसके जैसा हूँ।
न कुछ पाने की इच्छा है
न कुछ मिलने की ख्वाहिश है
अब सफर खत्म ये हो जाये
अब तो बस यही गुजारिश है
जितना समझा लिख डाला है
अब खुद समझो मैं कैसा हूँ।।
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Abhinav ji
15-Apr-2023 08:56 AM
Very nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
15-Apr-2023 07:32 AM
बहुत ही खूबसूरत एहसास
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अदिति झा
15-Apr-2023 01:13 AM
Nice 👍🏼
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